किस तरह गरुड़ बने भगवान विष्णु के वाहन: एक दिन पक्षी राज गरुड़ ने अपनी माँ विनता से पूछा की उसे हमेशा सांपों की बात ही क्यों सुननी चाहिए। विनता ने तब उसे बताया कि कैसे उसके साथ छल किया गया और गुलाम बनाया गया।
गरुड़ सांपों के पास गए और उनसे पूछा कि वे अपनी मां को गुलामी से बाहर निकालने में क्या मदद कर सकते हैं। नागों ने अमृत माँगा। गरुड़ अमृत लाने गए।
अपनी यात्रा पर जाने से पहले उसने अपनी माँ से पूछा कि वह किस प्रकार का भोजन खा सकता है। विनता ने उससे कहा कि रास्ते में उसे निषादों की एक बस्ती मिलेगी और उसे खाकर वह अपनी यात्रा जारी रख सकेगा। उसने उसे चेतावनी दी कि वह किसी भी ब्राह्मण को गलती से भी न खाए और न मारे।
गरुड़ ने अपनी यात्रा प्रारंभ की। जब वे निषाद की बस्ती में पहुँचे तो उन्होंने वहाँ भोजन किया, पर उनकी भूख नहीं मिटी। इसलिए वह सलाह लेने के लिए अपने पिता ऋषि कश्यप के पास गए। ऋषि ने गरुड़ बताया कि पास में एक नदी है। उस नदी में एक विशाल हाथी और एक बड़ा कछुआ दोनों शत्रु हैं और लड़ते रहते हैं।
ऋषि कश्यप ने उनके पिछले जन्म की कहानी सुनाई कि वे भाई थे लेकिन एक-दूसरे से नफरत करते हैं और लड़ते रहते हैं। दोनों एक दूसरे को कोसते रहे और इस जीवन में हाथी और कछुआ बन गए। वे लड़ते रहते हैं ताकि तुम उन्हें देख सकप और खा सको।
अपने पिता से आशीर्वाद लेने के बाद गरुड़ अपनी यात्रा पर आगे बढ़े। जब देवताओं ने उसे आते देखा तो उन्हें अमृत की सुरक्षा की चिंता हुई। वे भगवान इंद्र और अन्य देवताओं के साथ एक भयंकर युद्ध के बाद कलश को छुपाने की कोशिश करते हैं।
गरुड़ अमृत कलश लेने में सफल हो जाते हैं। जब भगवान विष्णु ने गरुड़ को देखा, तो वे प्रभावित हुए कि पक्षी को अमृत पीने की कोई इच्छा नहीं थी, इसलिए उन्होंने उसे यह वरदान दिया कि वह बिना अमृत पिए भी अमर हो जाएगा। गरुड़ ने उन्हें एक इच्छा भी दी कि वह उनका व्यक्तिगत उड़ने वाला वाहन होगा।