ये कहानी आपको सिखाएगी भगवान को पाने के कुछ अनोखे तरीके, नास्तिक को आस्तिक बना दे ऐसी मिलेगी प्रेरणा, पढ़िए पूरी कहानी

ये कहानी आपको सिखाएगी भगवान को पाने के कुछ अनोखे तरीके– एक गाँव में एक बूढ़ी माँ रहती थी। माई अकेली रहती थी क्योंकि उसके आगे या पीछे कोई लोग नहीं होते थे। उस गांव में एक दिन एक साधु आया था। साधु का सत्कार करना बुढ़िया की ओर से बहुत ही प्रेमपूर्ण भाव था। साधु के जाते ही बुढ़िया माई ने महात्मा जी को पुकारा। “महात्मा जी!” उसने कहा। “मैं अकेले रहते हुए थक गई हूँ। कृपया मुझे ऐसा आशीर्वाद दें जिससे मेरा अकेलापन दूर हो जाए।”

उन्होंने मुस्कुराते हुए बुढ़िया को बाल गोपाल की मूर्ति दी और कहा, “माँ, यह आपका बच्चा है, इसकी देखभाल एक बच्चे की तरह करें।” बुढ़िया को ठाकुर जी को दुलारते देर न लगी।

गाँव के बच्चों के एक शरारती समूह ने माई को मूर्ति को ऐसे लाड़ करते देखा जैसे वह उनका अपना बच्चा हो। शरारती बच्चों के मन में अपनी मां के साथ मजाक करना था। उसने माई से कहा – “अरे माँ, तुम अपने बेटे का ख्याल रखना, तुम्हारे गाँव में जो भी भेड़िया आएगा, उसे उठा कर ले जा सकता है।”

दरवाजे पर पहरा देने के लिए बुढ़िया द्वारा लाठी (छड़ी) का प्रयोग किया जाता था जबकि उसका बाल-गोपाल कुटिया के भीतर बैठा रहता था। भूखी-प्यासी होने पर भी बुढ़िया माँ अपने बेटे को भेड़ियों से बचाने के लिए दरवाजे पर पहरा दे खड़ी रही। पहरेदारी करते-करते एक दिन बीत गया, उसके बाद दो और, तीन और, चार और और पाँच और दिन बीत गए।

बुढ़िया बिना पलक झपकाए पांच दिन और पांच रात बिना रुके अपने बाल-गोपाल की रखवाली करती रही। ठाकुर जी ने उस भोली माँ का यह भाव देखते ही उनके हृदय में प्रेम उमड़ आया और अब वे सीधे जानना चाहते थे कि माँ का उनसे कितना प्रेम है।

प्रभु अत्यंत सुंदर रूप धारण करके, वस्त्र और आभूषणों से विभूषित होकर माई के पास आए। ठाकुर जी के चरणों की आहट सुनकर माँ डर गई कि “कहीं दुष्ट भेड़िया आ गया है मेरे बेटे को लेने!” माई ने छड़ी उठाई और भेड़िये को भगाने के लिए खड़ी हो गई।

तब श्यामसुन्दर ने कहा – “मैं हूँ माता , मैं आपकी वही संतान हूँ – जिसकी आप रक्षा करते हैं!”

माई ने कहा – “क्या? चले जाओ, मैंने तुम्हारे जैसे बहुत देखे हैं, मैं अपने पुत्र के लिए तुम्हारे जैसे सैकड़ों बलिदान कर दूँगी, अब ऐसा मत कहो! चले जाओ यहाँ से।”

इस भाव और माता की एकता ने ठाकुर जी को बहुत प्रसन्न किया। उसके उत्तर में ठाकुर जी ने कहा, “हे मेरी भोली माँ, मैं भगवान त्रिलोकीनाथ हूँ, मुझसे कोई भी वर मांग लो, तुम्हारी भक्ति पाकर मैं बहुत प्रसन्न हूँ।”

“ठीक है, आप भगवान हैं! मैं आपको सौ बार प्रणाम करता हूं! कृपया मुझे यह वरदान दें कि मेरा बेटा भेड़िया नहीं ले जाएगा।” तब ठाकुर जी ने और भी उत्साहित होकर माँ से कहा, “आओ माँ। मैं तुम्हारे पुत्र और तुम्हें अपने निज धाम ले चलता हूँ जहाँ भेड़ियों का कोई भय नहीं है।” इस प्रकार प्रभु बूढ़ी माता को अपने घर ले गए।

सीख-

काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार रूपी भेड़ियों से अपने दिव्य अंश की रक्षा करनी चाहिए। यदि हम पूरी निष्ठा से अपनी पवित्रता और शांति की रक्षा के लिए हर संभव प्रयास करेंगे तो एक दिन भगवान हमें अवश्य दर्शन देंगे। ईश्वर के लिए प्रेम ईश्वर तक पहुँचने का सबसे तेज़ तरीका है – प्रेम जो निःस्वार्थ है, जैसा कि बूढ़ी माँ ने दिखाया।

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