माता पार्वती और भगवान शिव के प्रेम में किसने विघ्न डालने की कोशिश की
माता पार्वती और भगवान शिव के विवाह का तीसरा प्रमुख उद्देश्य तारकासुर का वध था। तारकासुर नाम के एक राक्षस ने भगवान ब्रह्मा से एक विशेष वरदान प्राप्त किया था, इस वरदान के अनुसार भगवान शिव के पुत्र को छोड़कर कोई भी उसे मार नहीं सकता था।
जिस समय तारकासुर ने अपना वरदान प्राप्त किया, उस समय भगवान शिव अपनी पत्नी माता सती के योग की आग में जलकर भस्म हो जाने के बाद एक पूर्ण रूप से वैरागी बन गए थे।
ब्रह्मा ने पार्वती के अंदर भगवान शिव से विवाह करने की इच्छा पैदा की। माता पार्वती ने अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए तपस्या की और भगवान शिव उनके पति रूप में प्रकट हुए।
कामदेव के बाण के प्रभाव में भगवान शिव और माता पार्वती एक-दूसरे के प्रति आकर्षित हो गए थे, लेकिन रति के श्राप के कारण माता पार्वती गर्भ धारण करने में असमर्थ थीं।
इसके अलावा देवताओं को यह भी डर था कि यदि भगवान शिव और पार्वती के मिलन से पुत्र उत्पन्न हुआ तो वह भगवान शिव और पार्वती से भी अधिक शक्तिशाली होगा और देवताओं के राज्य पर अधिकार कर लेगा।
जब पार्वती के प्रति भगवान शिव का प्रेम जाग उठाया तब देवताओं ने माता पार्वती और भगवान शिव के प्रेम में विघ्न डालने की कोशिश की| इससे पार्वती क्रोधित हो गईं और उन्होंने सभी देवताओं को यह कहते हुए श्राप दे दिया कि वे संतान पैदा नहीं कर पाएंगे।
![माता पार्वती और कार्तिकेय](https://bhaktiastha.com/wp-content/uploads/2022/12/माता-पार्वती-1-1024x538.jpg)
प्रेम में विघ्न के बाद भगवान शिव ने अग्नि को अपना तेज प्रदान किया और अग्नि के माध्यम से वो गंगा तक पहुंचा और अंत में जो पुत्र उत्पन्न हुआ उसको छह कृतिकाओं ने पाला और वह बालक कार्तिकेय कहलाया। कार्तिकेय ने ही तारकासुर का वध किया।