कौन थे जम्बू स्वामी? कहाँ हुआ था उनका जन्म? वह क्या कारण था उनको अकेले ही एक राजा के ऊपर चढ़ाई करनी पड़ी?

कौन थे जम्बू स्वामी: जम्बू स्वामी का जन्म सेठ अरदास और जेनमत्ती के घर फागुन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा में हुआ था| सेठ अरदास का परिवार एक धनी और सम्पन्न परिवार था| बचपन से ही जम्बू स्वामी बिना विद्या के धर्म और पुरुषार्थ के कार्य करने में रुचि थी और उसमें वे निपुण थे|

उन्होंने मात्र 45 वर्ष की उम्र में ही ज्ञान की प्राप्ति कर ली थी, इसके लिए उनको 11 वर्ष घोर तपस्या करनी पड़ी थी| 

उनको केवली सुधमाचार्य से दीक्षा मिली थी और इसके बाद जम्बू स्वामी ने 12 तपस्याएं की थी| 

45 की उम्र में ज्ञान के प्राप्ति के बाद 40 वर्षों तक विभिन्न जगहों का भ्रमण करते हुए उन्होंने जैन धर्म का प्रचार प्रसार किया। मोक्ष प्राप्ति के बारे में उपदेश देकर उन्होंने लोगों को सत्य का बोध कराया।

जम्बू स्वामी अनुयायियों के बीच
जम्बू स्वामी अनुयायियों के बीच

संवत 62 में जम्बू स्वामी ने मथुरा का भ्रमण किया और यहीं उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई। राजस्थान के डीग शहर के रहने वाले जोधराज ने जम्बू स्वामी की मथुरा यात्रा का सपना देखा और जब जोधराज और अन्य भक्तों को उस स्वप्न की सच्चाई का पता करने के लिए मथुरा पहुंचे तो उन्होंने जम्बू स्वामी के पैरों के निशान देखे। 

तत्पश्चात जैन श्रावकों ने दिल्ली मथुरा बाइपास पर मथुरा स्थित तपोभूमि को जैन सिद्ध क्षेत्र चौरासी के नाम से पूजना प्रारंभ किया। कालांतर में इस स्थान को विश्व प्रसिद्ध तीर्थस्थल और सेवा का केन्द्र बनाने में हजारों भक्त उनके साथ जुड़ गए।

कहा जाता है कि जम्बू स्वामी के पास बचपन में दैवीय शक्तियां थीं और उन्होंने मदांध हाथी को वश में कर लिया था। वह जन्म से ही युद्ध कला में भी निपुण था। एक बार केरलपुर के राजा रत्नाचुल ने राजा मृगांक पर चढ़ाई कर दी, तब राजा मृगांक ने राजगृह के राजा श्रेणिक से मदद मांगी| इसके बाद राजा श्रेणिक ने अपने सामंतों से मदद मांगी पर उन सब सामंतों ने अपने हाथ खड़े कर दिए और शर्म से  झुका लिया| यह शर्मनाक दृश्य देखकर जम्बू स्वामी ने राजा से कहा कि हे पृथ्वी नाथ यह तो एक साधारण सी बात है, आप अगर अनुमति दें तो मैं अकेले ही रत्नाचुल को परास्त कर दूंगा।

अनुमति मिलने पर जम्बू कुमार ने कुछ सैनिकों के साथ केरलपुर की ओर कूच किया। उसने युद्ध किया और न केवल सेना को हराया बल्कि रत्नाचूल को भी बंधक बना लिया और उसे श्रेणिक के सामने पेश किया। जैन धर्म के भक्त उन्हें विद्युतमाली नाम के देवता का अवतार मानते हैं और श्रद्धा से उनकी पूजा करते हैं।

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