कैसे हुई धृतराष्ट्र, गांधारी और कुंती की मृत्यु? क्यों कुरुक्षेत्र के युद्ध के बाद अश्वत्थामा को 3000 सालों तक कोड़ी बनकर रहना पड़ा?

कैसे हुई धृतराष्ट्र, गांधारी और कुंती की मृत्यु: कुरुक्षेत्र का युद्ध समाप्त होने के पश्चात युधिष्ठिर हस्तिनापुर के राजा बन गए| राजा बनने के बाद युधिष्ठिर ने अपने सभी भाईयों को अलग अलग दायित्व सौंपें|

युयुत्सु जो कुरुक्षेत्र के युद्ध में कौरवों की तरफ से युद्ध लड़ने के लिए उतरा था और युद्ध शुरू होने से पहले धर्म का साथ देने के लिए पांडवों की तरफ से होकर लड़ना शुरू किया उसको धृतराष्ट्र की सेवा का भार सौंपा गया|

जब पांडवों ने स्वर्ग की ओर प्रस्थान किया तब युयुत्सु को परीक्षित के राजा बनने के बाद उसका संरक्षक बना दिया गया|

युयुत्सु के अलावा और भी लोग इस युद्ध में बचे थे उनमें से एक कृपाचार्य भी थे, क्योंकि कृपाचार्य को चिरंजीवी रहने का वरदान मिला हुआ था|

कृपाचार्य अश्वत्थामा के मामा और कौरवों के कुलगुरू थे| ऐसा माना जाता है कि कृपाचार्य आज भी जीवित हैं|

कृपाचार्य के अलावा सत्यकी भी एक योद्धा था जो युद्ध के बाद भी जीवित था|

सत्यकी पांडवों की तरफ से इस युद्ध में लड़ा था| सत्यकी एक यादव योद्धा था, पांडवों की तरफ से लड़ते हुए सत्यकी ने कौरवों के तरफ से लड़ रहे कुछ प्रमुख योद्धाओं को भी मार डाला था, जिनमें से जलसंधि, त्रिगर्तों की गजसेना, सुदर्शन, म्लेच्छों की  सेना, भूरिश्रवा, कर्णपुत्र प्रमुख थे।

सत्यकी ने यादवों की लड़ाई में कृतवर्मा का सर काट दिया था|

अश्वत्थामा
अश्वत्थामा

इस युद्ध के बाद अश्वत्थामा भी जीवित बच गया था, परंतु उसका जीवन बहुत ही कष्टदायी था|

जब अश्वत्थामा ने अपने पिता के मृत्यु हो जाने पर गुस्से में आकर ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया था, तब  श्री कृष्ण ने अश्वत्थामा को 3000 वर्षों तक कोड़ी बनकर जीवित रहने का श्राप दे दिया था ।

युद्ध में कौरवों के हार के बाद धृतराष्ट्र और गांधारी पांडवों के साथ 15 साल रहे|

एक दिन भीम ने आकर धृतराष्ट्र और गांधारी को कुछ ऐसी बातें कहीं जो उन्हें अच्छी नहीं लगी, और वह वन में चले गए और उनके साथ कुंती, विद्युत और संजय भी चले गए और वहां रहकर तप करने लगे।

एक दिन जब युधिष्ठिर उस वन में पहुंचे तब विदुर ने अपने प्राणों को त्याग कर युधिष्ठिर में समा गए|

एक दिन जब धृतराष्ट्र और अन्य लोग गंगा में स्नान करके वापस आ रहे थे, तभी उस जंगल में भयंकर आग लग गई और दुर्भाग्यवश कुंती, गांधारी और धृतराष्ट्र उस आग से नहीं निकल पाए ,और उन्होंने उसी जंगल की आग में अपने देह को त्यागने का विचार किया, और वह वहीं एकाग्र चित्त होकर बैठ गए और अपने प्राण त्याग दिए|

 संजय ने यह सभी बातें तपस्वीओं को बताई और वह हिमालय की और चले गए।

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