आखिर क्या है चाणक्य के मृत्यु का रहस्य? क्या आचार्य चाणक्य ने खुद अपने स्वेच्छा से प्राण त्यागे या फिर उनकी हत्या की गयी…

आखिर क्या है चाणक्य के मृत्यु का रहस्य: आचार्य चाणक्य की मौत के बारे में कई तरह के बातों का उल्लेख मिलता है

कहीं कहीं पर ये बताया जाता है की वो अपने सभी तरह के कार्यों को पूरा करने के बाद एक दिन रथ पर सवार होकर मगध से दूर जंगलों में चले गए थे और उसके बाद फिर वो कभी नहीं लौटे| 

वहीं कुछ के अनुसार उनको मगध की ही रानी हेलेना ने ज़हर देकर मार दिया था| 

इनके आलावा आचार्य चाणक्य की मृत्यु को लेकर बहुत सारी कहानियां प्रचलित हैं, पर किसी भी कहानी की सत्यता की पुष्टि नहीं की जा सकती | 

दो तरह की कहानियां जो सबसे ज्यादा प्रचलित है वो हैं:

कहानी :

ये उस समय की बात है जब चन्द्रगुप्त के मृत्यु के पश्चात वीमभिसार आचार्य चाणक्य के मागदर्शन में सफलता पूर्वक शासन चला रहे थे  और उन दिनों आचार्य चाणक्य पारिवारिक संघर्ष और षड्यंत्रों का सामना करना पड़ रहा था | 

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इसका कारण था आचार्य चाणक्य और राज के बीच घनिष्टता जो द्द्वेष और इर्षा वर्ष कुछ लोगों को पसंद नहीं आ रही थी |

इन कुछ लोगों में एक मंत्री सुबंधु था जो आचार्य चाणक्य को राजा वीमभिसार से दूर कर देना चाहता था | सुबंधु ने आचार्य चाणक्य को राजा से दूर करने के लिए यह कहानी भी राजा को सुनाई की राजा के माँ की मृत्यु आचार्य चाणक्या के कारण ही हुई थी | 

इस कारण राजा और चाणक्य में धीरे धीरे दूरियां बढ़ने लगी और दूरियां इतनी बढ़ गयी की आचार्य चाणक्य राजा का महल एक दिन चुपचाप छोड़ क्र चले गए| 

आचार्य चाणक्य के जाने के बाद एक दिन दाई ने जिसने राजा के जन्म में मदद की थी उसने राजा को बताया की राजा के माँ की मृत्यु का कारण आचार्य चाणक्य नहीं है बल्कि उनके कारण ही आज राजा इस दुनिया में जीवित  हैं | अगर चाणक्य न होते तो उनकी माँ एक मृत संतान को जन्म देती |

दाई ने बताया की चन्द्रगुप्त को आचार्य चाणक्य थोड़ा थोड़ा करके ज़हर दिया करते थे ताकि उनका शरीर ज़हर का आदि हो जाए जिससे की कभी कोई शत्रु अगर चन्द्रगुप्त को कभी ज़हर देकर मारने की कोशिश करे तो चन्द्रगुप्त की ज़हर खाने से मृत्यु न हो | 

मगर इसी दौरान एक अनहोनी घटित हो जाती है जो विष मिला खाना राजा के लिए था वो राजा की गर्भवती पत्नी यानी की चन्द्रगुप्त की पत्नी ग्रहण कर लेती है, इस कारण उनकी तबियत बिगड़ जाती है और जब यह बात आचार्य चाणक्य को पता चलती है तो वो रानी के गर्भ को काटकर उनके संतान को बचाने के गर्भ से बाहर निकाल लेते हैं और चंदगुप्त के वंश की रक्षा करते हैं और इस कारण रानी की मृत्यु हो जाती है | 

यह सुन कर राजा को अपनी गलती का अहसास होता है और फिर वो आचार्य चाणक्य से क्षमा मांगते हुए वापस महल चलने के लिए निवेदन करते हैं मगर आचार्य चाणक्य मना कर देते हैं और पूरी उम्र उपवास करने के ठान लेते हैं और अंत में वो प्राण त्याग देते हैं | 

कहानी :

इस कहानी के अनुसार बिन्दुसार के मंत्री सुबंधु ने आचार्य चाणक्य को जला कर मारने की कोशिश की थी और उसमें वो सफल भी हुए थे | 

मगर कहीं भी इस चीज़ की पुष्टि नहीं होती है की आचार्य चाणक्य की मृत्य खुद से हुई थी या की किसी और कारणवश हुई थी| 

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