क्यों कर्ण ने सही और गलत में गलत का साथ चुना– कर्ण एक ऐसा पात्र है महाभारत में जो कौरवों की तरफ से लड़ने के बावजूद भी लोगों द्वारा पसंद किया जाता है.
आज भी कर्ण को एक महान दानवीर और धनुर्धरों में एक महान धनुर्धर के रूप में जाना जाता है.
मगर यह प्रश्न हर समय पुछा जाता है की कर्ण जो सदैव धर्म का साथ देता था उसने क्यों दुर्योधन जैसे अधर्मी का साथ चुना?
यह जानने के बावजूद की जिन पांडवों के खिलाफ वो लड़ रहा है वो उसके ही माँ के बच्चे हैं फिर भी उसने कौरवों को चुना.
कर्ण को हमेशा सूत पुत्र कहलाया जाता था जबकि वो एक सूर्य पुत्र था l बचपन से ही प्रतिभाशाली और तेजस्वी होने के बावजूद उसको अपनी प्रतिभा को दिखाने का सही अवसर नहीं मिला l
एक कथा के अनुसार महाभारत में एक बार ऋषि दुर्वासा पांडवों की माँ कुंती के पिताजी के महल में ठहरे .
उस समय कुंती अविवाहित थी और कुंती ने ऋषि दुर्वासा की खूब सेवा की l इस सेवा से प्रसन्न होकर ऋषि दुर्वासा ने कुंती तो वरदान दिया और इसी वरदान के कारण भविष्य में पांडवों और कर्ण के बीच एक सबंध स्थापित हुआ.
ऋषि ने कुंती को वरदान दिया की वो कभी भी किसी भी देवता से संतान पा सकती है l इस वरदान की परीक्षा लेने के लिए कुंती ने सूर्यदेव का आवाहन किया और इस वरदान के कारण कुंती गर्भवती हो गयी और कुछ समय पश्चात अविवाहित कुंती ने कर्ण को जन्म दिया, मगर लोक लाज के दर से कुंती को कारण को त्यागना पड़ा क्योंकि एक अविवाहित स्त्री का गर्भ धारण करना चरित्रहीन माना जाता था.
ऐसे में कुंती ने कर्ण को एक बक्से में रखकर नदी में भा दिया. यह बक्सा नदी में एक सारथि को मिला जो निःसंतान था. निःसंतान सारथि कर्ण को लेकर अपने घर गया जहां भविष्य में उसने और उसकी पत्नी ने मिलकर कर्ण का पालन पोषण किया.
इस तरह एक सूर्य पुत्र होने के की जगह कर्ण एक सूत पुत्र के रूप में जाने जाना लगा .
जैसे जैसे कर्ण बड़ा होने लगा उसको धनुर विद्या और तलवारबाजी में महारत हासिल होने लगी मगर एक सूत पुत्र होने के कारण उसे इन सब विद्याओं में कभी उचित शिक्षा नहीं मिली और न ही वो सम्मान जिसके वो हकदार थे.
कर्ण गुरु द्रोणाचार्य से धनुर्विद्या सीखना चाहते थे मगर एक सूत पुत्र होने के कारण गुरु द्रोणाचार्य ने कर्ण को शिक्षा नहीं दी.
एक कथा के अनुसार जब कर्ण गुरु द्रोणाचार्य के पास पहुंचे तब उस समय कौरवों और पांडवों के बीच अभ्यास चल रहा था, द्रोणाचार्य का प्रिय अर्जुन एक एक कर सभी कौरवों को अभ्यास में हरा रहा था ऐसे में कर्ण ने आकर अर्जुन को चुनौती दी.
गुरु द्रोणाचार्य ने जब कर्ण से उसका परिचय पूछा और कर्ण ने बताया की वो एक सारथि का पुत्र है तब सब हसने लगे और अर्जुन ने कर्ण को चले जाने को कहा क्योंकि उसके अनुसार कर्ण एक क्षत्रिय नहीं था.
ऐसे में कर्ण ने अर्जुन को कहा की अर्जुन को अंदर ही अंदर यह भय है की वो कर्ण से पराजित हो जाएगा इसलिए वो इस दर से कर्ण को वहां से चले जाने को कह रहा है और अगर अर्जुन में साहस है तो वो उसका सामना करे.
इस ललकारने के बावजूद अर्जुन नहीं माना, ऐसे में दुर्योधन ने हस्तक्षेप किया और बोला की कोई भी व्यक्ति ३ कारणों से क्षत्रिय बनता है.
पहला वो खुद किसी क्षत्रिय का पुत्र हो, दूसरा उसने खुद अपने पराक्रम से किसी क्षत्रिय को हराया हो, या तीसरा की उसके पास कोई राज्य हो.
इसलिए दुर्योधन ने बोला की वो कर्ण को अंग देश का राजा बना रहा है, इसके बाद कर्ण एक सूत पुत्र नहीं रहेगा और एक क्षत्रिय के रूप में कर्ण को मान्यता मिल जायेगी l दुर्योधन ने एक पंडित को बुलाकर वहीं पर कर्ण का राज्य अभिषेक कराया.
इन सबके बीच सूर्य अस्त होने लगा और अर्जुन और कर्ण के बीच मुकाबला नहीं हो पाया.
इस घटना के बाद कर्ण और दुर्योधन घनिष्ट मित्र बन गए | इसके बाद कर्ण ने ये प्रण लिया की वो हर हाल में मरते दम तक अपने मित्र दुर्योधन का साथ देगा | इसी कारण वश कर्ण ने हर अच्छे और बुरे कार्य में दुर्योधन का साथ दिया |
जब श्री कृष्ण ने कर्ण को बता की वो राजमाता कुंती का ज्येष्ठ पुत्र है और पांडव उसके छोटे भाई हैं और वो पांडवों का साथ दे | कर्ण ने श्री कृष्ण से कहा की जब वो जान गया है की वो एक कुंती पुत्र है और पांडव उसके अनुज हैं तो ऐसे में क्या ये ठीक होगा की मैं अपने मित्र को त्याग दूँ और अभी तक मैंने अपमान ही सहा है और अगर मैं दुर्योधन का साथ नहीं देता हूँ तो आने वाली पीढ़ीयाँ मुझे माफ़ नहीं करेगी| दुर्योधन ने मेरा साथ तब दिया जब सब मेरा तिरस्कार कर रहे थे, दुर्योधन ने मुझे सम्मान दिया |
युद्ध क्षेत्र में जो मैं पराक्रमी के रूप में जाना जा रहा हूँ वो दुर्योधन की वजह से ही जाना जा रहा हूँ ऐसे में वो चाहकर भी अपने वचन से नहीं पलट सकता और दुर्योधन को धोखा नहीं दे सकता हूँ | पर मैं वचन देता हूँ की युद्ध में अर्जुन के अलावा किसी दूसरे पांडव पर जानलेवा हमला नहीं करूंगा |
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