क्यों भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी जन्म देने के बाद अपने पुत्र को जंगल में छोड़ कर चले गए? कौन था जिसने जंगल से उस बच्चे को उठाकर उसकी परवरिश की और उसे बाद में राजा बनाया?

भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का पुत्र: भागवत पुराण के अनुसार एक बार माता लक्ष्मी को विष्णुजी ने घोड़ी होने का श्राप दिया था और वो यमुना नदी और तमसा नदी के संगम के किनारे घोड़ी के रूप में वास कर रही थी|

वहाँ वास करते हुए माता लक्ष्मी ने शिवजी की पूजा अर्चना और तपस्या की, लक्ष्मी माता के तपस्या से प्रसन्न होकर शंकर जी ने लक्ष्मी माता को वरदान दिया वह शीघ्र ही अपने पति विष्णु का सानिध्य प्राप्त करेगी और एक पुत्र की मां बनने के पश्चात विष्णुजी के कहे अनुसार इस श्राप से मुक्त होकर पुनः वैकुंठ धाम चली जाएंगी| इस वरदान के बाद ठीक यही हुआ माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु को एक बालक की प्राप्ति हुई|

विष्णु जी ने इस बालक का नाम हैहय रखा| बालक को जन्म देने के बाद विष्णु जी ने लक्ष्मी जी को बोला कि आप अपना वास्तविक रूप धारण करें और हम लोग वैकुंठ की तरफ चलते हैं और इस बालक को हम यही छोड़ देते हैं|

मैंने पहले ही इस बालक के पालन पोषण की व्यवस्था कर दी है, जिसके बाद माता लक्ष्मी और विष्णु जी वैकुंठ धाम जाने के लिए तैयार हो गए|

बालक को देखकर देवी लक्ष्मी पुत्र मोह में पड़ गई और उन्होंने विष्णु जी से पूछा कि क्या हम इस बालक को अपने साथ नहीं ले जा सकते? इस घने जंगल में यह बालक अकेला कैसे रह सकता है?

यह सुनकर विष्णु जी देवी लक्ष्मी से बोले हरि वर्मा नाम के एक राजा हैं जिन्होंने पुत्र प्राप्ति करने के लिए मेरी तपस्या की है| वह 100 वर्षों से मेरी तपस्या कर रहे हैं| मैं अभी जाकर उनको वरदान देता हूं कि वह मेरे द्वारा उत्पन्न पुत्र को अपना ले|

यह सुनकर माता लक्ष्मी का मन शांत हो गया और भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी उस स्थान पर गए जहाँ  हरि वर्मा तपस्या कर रहे थे|

विष्णु जी को अपने सामने देख हरि वर्मा अत्यंत ही प्रसन्न हो गए और उन्होंने माता लक्ष्मी और श्रीकृष्ण को प्रणाम किया, इसके बाद श्री कृष्ण हरि वर्मा को बोले कि हरि वर्मा तुमने मेरे जैसे पुत्र की प्राप्ति के लिए 100 वर्षों से कठिन तपस्या की है, इसलिए तुम्हारी इच्छा पूर्ण करने के लिए एक पुत्र उत्पन्न किया है| जो इस समय यमुना और तमसा नदी के संगम स्थान पर है|

तुम इसी पल वहां जाकर उसे लेकर अपनी राजधानी को लौट जाओ| यह सुनकर हरि वर्मा के खुशी का ठिकाना नहीं रहा और वह भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी को प्रणाम कर उस स्थल के लिए रवाना हो गए|

जिस जगह वह बालक था उस जगह चंपक नाम का एक राजा अपनी पत्नी मदालसा के साथ आया और बालक को देखते ही मदालसा के मन में उसे अपना पुत्र बनाने की इच्छा जाग जाती है| तब राजा चंपक और मदालसा यह पता लगाने के लिए कि वह बालक किसका है देवराज इंद्र के पास जाते हैं|

मदालसा के हाथों में उस बालक को देखकर इंद्र देव कहते हैं कि इस बालक को तुम अपने घर नहीं ले जा सकते क्योंकि यह भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का पुत्र है|

राजा हरि वर्मा विष्णुजी की तपस्या करते हुए
राजा हरि वर्मा विष्णुजी की तपस्या करते हुए

इस पत्र को भगवान विष्णु ने राजा हरि वर्मा के लिए ही उत्पन्न किया है इसलिए तुम इस बालक को उसी स्थान पर छोड़ आओ जहां से इसे लाए हो, क्योंकि राजा हरि वर्मा शीघ्र ही उस स्थान पर पहुंचने वाले हैं|

इंद्र देवता की बात मानकर राजा चंपक और मदालसा उस बालक को उसी स्थान पर रख देते हैं| इतने में राजा हरि वर्मा उस स्थान पर पहुंच जाते हैं और उस बालक को देखकर अति प्रसन्न होते हैं और उसे लेकर अपने राज्य चले जाते हैं|

वहीं जब मंत्रियों और रानी को यह पता चला कि राजा पुत्र के साथ राजधानी की तरफ आ रहे हैं तब वो सब राजधानी के बाहर जाकर राजा का स्वागत सत्कार करते हैं|

उस बालक को देखकर रानी बहुत ही खुश हो जाती है| समय के साथ साथ राज्य ने उस बालक को कई विद्या सिखाई और उस बालक का नाम एकवीर रखा|

जब वह बालक बड़ा हो गया तब उसे राजा बना कर खुद हरि वर्मा भगवान की भक्ति में लीन होने के लिए जंगल में चले गए।

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