क्यों देवताओं को असुरों से समुद्र के नीचे जाकर लड़ना पड़ा: देव और असुर चचेरे भाई थे जो हमेशा एक दूसरे के साथ युद्ध में रहते थे।
देवों ने देवलोक, पृथ्वी के ऊपर की दुनिया पर शासन किया। असुर पृथ्वी के नीचे की दुनिया में रहते थे, जिसे पाताल कहा जाता था।
सूर्यास्त के बाद असुर अधिक शक्तिशाली हो जाते थे। इसलिए, असुर हमेशा रात में अपने चचेरे भाइयों पर हमला करते थे। ज्यों-ज्यों सूर्य उदय होता था, देवों का बल बढ़ता रहता था और वो असुरों पर आक्रमण करने के लिए तैयार हो जाते थे।
लेकिन दिन के समय असुर गायब हो गए! देवताओं ने उन्हें स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल में खोजना शुरू कर दिया, लेकिन असुर कहीं नहीं मिले। अंत में देवों ने असुरों के पैरों के निशान समुद्र की ओर जाते देखे। यह देख इन्द्र देवता बोले के असुर समुद्र में जाकर चिप गए हैं| यह पता चलते ही देवताओं में जहां खुशी की लहर थी की उन्होंने असुरों को खोज लिया है वहीं उनके अंदर इस चीज़ की दुविधा भी पैड़ी हो गई की क्या वो उनसे पानी के लड़ सकते हैं?
ऐसे में इंद्र ने चारों ओर देखा और उनकी नज़र समुद्र तट पर ऋषि अगस्त्य पर पड़ी, जो ध्यान में आँखें बंद किए हुए थे। इंद्र उनके पास गए, प्रणाम किया और उनसे मदद मांगी। अगस्त्य एक शक्तिशाली ऋषि थे, जो देवों को पसंद करते थे। वह उनकी मदद करने को राजी हो गये।
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इसके बाद अगस्त्य मुनि सूर्य देवता की प्रार्थना करते हुए उन्होंने अपने हाथ समुद्र में डुबोए और कुछ पानी समुद्र से निकाल लिया|
अगले ही पल समुद्र का सारा पानी उनकी हथेलियों में समा गया! और साधु ने एक घूँट में सब पानी पी लिया! जैसे ही समुद्र का पूरा पानी अगस्त्य ऋषि के अंदर चला गया वैसे ही, असुर सूखे समुद्र तल पर खड़े मिले।
असुरों को देख देवता उन पर टूट पड़े और उन्होंने असुरों की बुरी तरह पिटाई कर दी| देवताओं के हाथों बुरी तरह पीटने के बाद असुर डर गए और वहाँ से भाग गए|
असुरों को भागता देख इंद्र ने सोचा कि अब असुर फिरसे से देवों को परेशान नहीं करेंगे और उन्होंने ऋषि अगस्त्य को धन्यवाद दिया और उन्हें कहा की “ऋषि, हमारा काम हो गया। अब आप पानी को समुद्र की तलहटी में लौटा सकते हैं।” अगस्त्य ने भौहें चढ़ाकर कहा, “भगवान इंद्र, मैंने अपनी शक्तियों से सारा पानी पी लिया है और पचा लिया है। अब मैं इसे कैसे वापस रख सकता हूं?”
इंद्र को बुरा लगा। समुद्र के बिना पृथ्वी पर सभी प्राणियों को कष्ट होगा। ऐसे में अगस्त्य ऋषि बोले की “केवल एक नदी ही इस खाली जगह को भर सकती है,” अगस्त्य ने आकाश की ओर देखते हुए कहा, “हमें गंगा के पृथ्वी पर आने की प्रतीक्षा करनी चाहिए।” इस प्रकार गंगा की लंबी प्रतीक्षा शुरू हुई।
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