कैसे पूरी पृथ्वी पर विजय प्राप्त करने के बाद एक राजा खुश नहीं था ? कैसे प्रतियोगिता में अपने बड़े भाई को हराने से अच्छा बाहुबली  ने तपस्या का मार्ग चुना?

राजा बाहुबली की राज्य भारत पर विजय: सदियों साल पहले भारत के पोदनपुरा में राजा बाहुबली का शासन था और उनके बड़े भैया भारत उत्तर भारत के अयोध्या पर शासन करते थे| दोनों ही राजा ऋषभनाथ के पुत्र थे| इन दोनों के अलावा राजा ऋषभनाथ के और बेटे भी थे जिनको उन्होंने अलग अलग राज्यों का राजा बनाया था जहां वो अपना शासन चलाते थे|

इन सब राजाओं में भारत राजा सभी राजाओं के राजा जाने जाते थे | भारत राजा को चक्र रत्न नामक एक चकाचौंध, दिव्य पहिया का आशीर्वाद प्राप्त था — इसकी उपस्थिति भारत की सेना की जीत सुनिश्चित करती थी। 

भारत ने अपनी सेना और दिव्य चक्र के साथ पूरी पृथ्वी पर मार्च किया और उसने हर राज्य को जीत लिया और अंत में अयोध्या वापस लौट आया| जब भारत ने अयोध्या में प्रवेश किया तब उन्होंने एक नायक के रूप में स्वागत की अपेक्षा की| मगर अयोध्या में घुसते ही वो निराश हो गए क्यों की अयोद्ध्या में प्रवेश करते ही उनका दिव्य पहिया रुक गया| 

दिव्य पहिये  ही राजा भारत आश्चर्य चकित रह गए और खुद से पूछा “क्या मैंने पूरी दुनिया में अपना शासन स्थापित नहीं किया है?” भरत को आश्चर्य हुआ। “अयोध्या के द्वार पर दिव्य पहिया रुक गया है। इसका मतलब है कि कुछ शासकों ने अभी भी मुझे अपना सम्राट स्वीकार नहीं किया है।” 

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तभी राजा भारत के एक वरिष्ठ मंत्री ने उन्हें बताया कि उनके अपने भाइयों ने भारत को अपने स्वामी के रूप में स्वीकार नहीं किया था। यह पता चलते ही भारत ने अपने भाइयों को पत्र भेजकर औपचारिक रूप से उन्हें अपने स्वामी के रूप में स्वीकार करने को कहा और उन्हें अपना श्रद्धांजलि भेजें। 

उनके भाइयों ने आसानी से अपने राज्यों को भरत को सौंप दिया और तपस्या करने के लिए जंगल चले गए। केवल एक भाई राजा भारत के सामने नहीं झुका और नुको अपना स्वामी मानने से मना कर दिया और वो थे  पोदनपुरा के राजा बाहुबली। 

बाहुबली ने घोषणा की, “मैं भारत को अपने बड़े भाई के रूप में सम्मान देता हूं, लेकिन अपने स्वामी के रूप में नहीं।” 

यह पता चलते ही राजा भारत चिढ़ गए और उन्होंने ठान ली की वो राजा बाहुबली को  झुका कर  उनको उनकी औकात दिखाएँगे| 

इसके बाद राजा भारत अपनी विशाल सेना और दिव्य चक्र के साथ पोदनपुरा के द्वार पर पहुंचे। बाहुबली उनसे उनके नगर के द्वार पर मिले की “यदि आप मेरे भाई के रूप में आए हैं, तो मैं आपको नमन करता हूं और यदि आप यहाँ एक राजा और एक विजेता के रूप में आये हैं तो मैं आपका विरोध करूंगा।”

इसके बाद दोनों भाइयों के बीच युद्ध होना अब निश्चित हो गया। यह भांप कर दोनों तरफ के मंत्री चिंतित थे। उन्होंने कहा, “अगर दोनों सेनाएं आपस में टकराती हैं, तो दोनों तरफ के हजारों सैनिक  मारे जाएंगे।” यह पता चलते ही भारत और बाहुबली दोनों इस बात पर सहमत हो गए कि वे अपनी सेनाओं को अपने बीच के संघर्ष से बाहर रखेंगे। 

Fight between Bharat and Bahubali

दोनों ने फैसला किया की वो दोनों तीन दौर के प्रतियोगिता में भाग लेंगे और जो इस तीन  दौर के प्रतियोगिता को हार जाएगा वह अपने निश्चय को त्याग देगा और विजेता के निश्चय को स्वीकार कर लेगा| 

प्रतियोगिता का पहला दौर एक दूसरे को बगैर पालक झपकाए घूरने का था, और जिसकी पलक पहले झपक जायेगी वो हार जाएगा| प्रतियोगिता के घंटों बीत जाने के बाद भी बाहुबली के पलकें नहीं झपकी और राजा भारत की आँखें झपक गयी| और वो पहला दौर हार गए| 

दूसरा दौर जल-युद्ध का था। दोनों भाई तालाब में कूद गए। यह एक दूसरे को पानी से मारने की प्रतियोगिता थी। इस मुकाबले में भी बाहुबली की जीत हुई। 

अंतिम दौर कुश्ती था। दोनों घंटों तक झगड़ते रहे। अंत में बाहुबली ने एक तेज चाल में अपने भाई को हवा में उठा लिया। बाहुबली भारत को नीचे फेंकने ही वाले थे कि सबकी सांसें रुक गईं। 

जिस क्षण, बाहुबली भारत को पकड़ रहे थे, उनकी आँखें क्रोध से जल रही थीं; अगले ही पल, बाहुबली ने राजा भारत को धीरे से जमीन पर गिरा दिया और उनको प्रणाम किया और बोले “गुस्से में,आकर मैं अपने आप को भूल गया। अगर मुझे होश नहीं आता तो मैं अपने ही भाई को मार डालता,”

मैं इस गुस्से को जीतना चाहता हूं और बाहुबली वन के लिए रवाना हो गए। जंगल में, बाहुबली अपने शरीर को ढके बिना आसमान के नीचे खड़े रहे|  वह दिन-रात बिना हिले-डुले खड़े रहें। कीड़े मकोड़े उनके शरीर पर घाव करते रहे पर बाहुबली चट्टान की तरह खड़े थे। वह शांति और प्रेममयी करुणा से भरे हुए थे| उनमें अब क्रोध, ईर्ष्या या अभिमान का लेशमात्र भी अंश नहीं था और उन्होंने मुक्ति प्राप्त  थी |

तब से बाहुबली स्वामी विशेष रूप से जैनियों द्वारा पूजे जाते हैं, जो बाहुबली के पिता ऋषभनाथ को पहला तीर्थंकर मानते हैं।

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